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संवत्सरी प्रतिक्रमण – भाव प्रतिक्रमण

Updated: Apr 12




एक महिला टैक्सी में बैठी, ड्राइवर को गंतव्य स्थान बताया, टैक्सी उस स्थान पर पहुँची तो महिला ने किराया पूछा। टैक्सी वाला बोला, ‘50 रूपया’। महिला ने अपना पर्स देखा और पैसे गिने, फिर वापिस टैक्सी में बैठी और बोली, ‘टैक्सी रिवर्स लेना।’ ड्राइवर ने आश्चर्य से पूछा, ‘क्यों? क्या हुआ?’ तो महिला बोली, ‘तुम्हारा बिल 50 रूपया हुआ है, और मेरे पास सिर्फ 45 रूपया ही है, इसलिए टैक्सी 5 रूपये जितनी रिवर्स में लो।’

उस महिला को यह नहीं पता था, कि रिवर्स में लेने से बिल कम नहीं होगा, उल्टे बढ़ेगा।

पीछे लौटने से, रिवर्स लेने से, पीछेहठ करने से शाबासी मिलेगी या बिल कम होगा या माफी मिलेगी, ऐसा दुन्वयी क्षेत्र लगभग नहीं होता।

प्रभु द्वारा स्थापित जैन शासन में एक अद्भुत प्रक्रिया बताई है, जिसमें पीछे हटने पर बिल कम अवश्य होगा, और इतना ही नहीं पूरा बिल माफ भी हो सकता है और ऊपर से बड़ी सी Gift भी मिलती है। इस प्रक्रिया का नाम है – प्रतिक्रमण।

अन्य धर्मों में अटॉनमेंट, कन्फेस या प्रायश्चित्त जैसे शब्द आते हैं, किन्तु प्रभु द्वारा बताई गई प्रतिक्रमण क्रिया सबसे निराली है। इसमें मात्र पापों का प्रायश्चित्त ही नहीं, बल्कि साथ ही गुणों में वृद्धि का भी तरीका दिया गया है। यह प्रक्रिया श्री कल्पसूत्र में बताए गए तीसरे वैद्य की औषधि जैसी है, 

(1) हो चुके पापों का नाश, 

(2) सम्भावित पापों से बचाव, और 

(3) सद्गुणों की कमाई।

श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी ने साधु और श्रावकों के लिए नित्य आवश्यक कर्तव्य के रूप में सुबह-शाम के राई-देवसि प्रतिक्रमण बताया है। और साथ ही  15, 120 और  360 दिन के पापों को विशेष रूप से धोने के लिए क्रमशः पक्खी, चौमासी और संवत्सरी प्रतिक्रमण भी बताया है।

संवत्सरी का अर्थ है- सामत्स्येन परिवसनं, यानी सबको एक साथ इकट्ठा होकर एक वर्ष के पापों का प्रायश्चित्त करना, यही संवत्सरी प्रतिक्रमण है।

त्रिकालज्ञानी सर्वज्ञ श्रमण भगवान महावीर स्वामी द्वारा बताया गया यह संवत्सरी प्रतिक्रमण हमारे कठोर, क्लिष्ट और कुटिल पापकर्मों को नष्ट करने में समर्थ है। किन्तु यह सामर्थ्य जुटाने के लिए, प्रति-क्रमण की क्रिया को क्रिया-न्वित करने के लिए, इसे अमृत अनुष्ठान बनाने के लिए और इसे भाव प्रतिक्रमण बनाने के लिए चार प्रक्रियाओं से होकर गुजरना होता है।

?️ Remembering : 

प्रतिक्रमण शुरू करने से पहले या प्रति-क्रमण के तथाप्रकार के सूत्र बोलते समय यह याद रखना कि मैं पूरे वर्ष में न करने योग्य कौनसे कार्य किए? प्रभु की आज्ञा के विरुद्ध कौनसे पापाचार, अनाचार या दुरा-चार किए? यदि खुद के पाप याद आएँगे तो हृदय नरम होगा और क्रियाओं में मन लगेगा, गद्-गद् भाव आएगा।

?️ Returning :

वापिस लौटना, किए गए प्रत्येक पाप की गुरु की साक्षी में निन्दा कीजिए, आँखों से आंसू बहने चाहिए और साथ ही यह दृढ संकल्प भी करना है कि अब से पाप के मार्ग पर कदम नहीं रखेंगे।

?️ Rethinking : 

विचारदशा बदलिए। अमूल्य मानव भव की आने वाली सुनहरी पलों का योग्य इस्तेमाल कैसे किया जाए? इसका समुचित आयोजन कीजिए। अपने विचारों की इस ओर गति दीजिए कि जीवन ऐसा जीना है कि अधिक से अधिक पापों का त्याग हो।

?️ Re-Living : 

नए जीवन की शुरूआत कीजिए। धोने के लिए रखे कपड़े और धुल चुके कपड़ों में जो फर्क है वही फर्क हमारी बुद्धि, व्यवहार और आत्मा में प्रति-क्रमण से पहले और बाद में आना चाहिए।

जिस प्रकार सर्पदंश के जहर से पीड़ित व्यक्ति को गारुड़ी कौनसे मन्त्र बोलता है, इसकी कोई जानकारी नहीं होती, किन्तु उसे यह श्रद्धा अवश्य होती है, कि यह मेरे जहर को उतारने की क्रिया कर रहा है। और इस श्रद्धा के आधार पर उसका जहर उतर जाता है। ठीक इसी प्रकार संवत्सरी प्रतिक्रमण के सूत्रों का अर्थ भले ही पता न हो, किन्तु इतनी श्रद्धा अवश्य रखना ये मन्त्राक्षर गणधर भगवन्तों द्वारा रचित हैं, और ये पिछले वर्ष में मेरे द्वारा किए गए पापों का नाश करने में पूर्णतया सक्षम हैं।

आखिरी बात, 

मम्मी ने पूछा, ‘चिंटू ! परीक्षा की तैयारी हो गई ?’ 

चिंटू बोला, ‘हाँ मम्मी! स्कूल ड्रैस को प्रैस कर दिया, बूट पॉलिश कर लिए, पेन में स्याही भर ली, बैग पैक कर दिया है….’ 

मम्मी बोली, ‘मैंने पढ़ाई के बारे में पूछा है।’ 

चिंटू बोला, ‘बस पढ़ना बाकी रह गया।’

शास्त्रकार हमसे पूछ रहे हैं, ‘पर्युषण और संवत्सरी की तैयारी हो गई?’ हम कह रहे हैं, ‘हाँ ! आसन, चरवला आदि ऊपर अलमारी से निकाल लिया है, नए कपड़े और गहने खरीद लिए हैं, नाश्ता बना दिया है…।’ तो शास्त्रकार कहते हैं, कि असली तैयारी तो बस दो चीज की ही करनी है :

  1. आलोचना द्वारा शुद्धि करके स्वयं को साफ करो, और

  1. क्षमापना द्वारा जगत् को माफ करो।

जिस प्रकार चिंटूने पढ़ाई के अलावा परीक्षा की बाकी सारी तैयारी कर ली, लेकिन हकीकत में तो सब व्यर्थ ही है, उसी प्रकार पूरे वर्ष में किए गए पापों की शुद्धि गुरु के समक्ष आलोचना द्वारा नहीं की, और जिस किसी के प्रति दुश्मनी, दुर्भाव और दुर्व्य-वहार हुए उनके साथ क्षमापना नहीं की तो संवत्सरी प्रतिक्रमण की तैयारी भी व्यर्थ ही है।

चलिए ! हम संकल्प करें, कि संवत्सरी के प्रति-क्रमण के पूर्व मैं इस वर्ष हुए समस्त पापों का गुरु भगवन्त से प्रायश्चित लूँगा, और जिसके साथ मेरा वैर, दुश्मनी हुई है उनसे क्षमा मांगकर ही मैं संवत्सरी का प्रतिक्रमण करूँगा।

तभी हमारा प्रतिक्रमण भाव-प्रतिक्रमण बनेगा।

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