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भक्ति, पर्व और उत्सवों का त्रिवेणी संगम है श्रावण मास। रक्षाबंधन के इस त्यौहार की सबसे बड़ी विशेषता है श्रावणी-पूर्णिमा के दिन होना। आज के दिन चन्द्र अपनी श्रेष्ठ पूर्णता पर होता है। हां, आज के दिन बहन द्वारा भाई के हाथ पर बांधी गई रेशम की एक राखी भाई-बहन के संबंधों को अनन्त काल के लिए स्थापित कर देती है।
भाई-बहन के स्नेह का बंधन रक्षाबंधन भी पूर्ण प्रभावी होता है। बहन अपने भाई के हाथ पर राखी बांध कर अपने प्रेम को प्रकट करती है, तो वहीं भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए वचनबद्ध होता है।
ऐसे तो बचपन से ही भाई-बहन का प्रेम संबंध अनोखा होता है। एक दूसरे के साथ हंसी-मजाक, मस्ती होती है। छोटी-सी बात पर बहन का रूठ जाना और भाई द्वारा उसकी मनुहार, मम्मी-पापा के गुस्से से एक दूसरे को बचाना, नये कपड़ों को देख कर खुश होना, एक दूसरे की सीक्रेट बात, पोल-पट्टी मम्मी पापा को बता देने की धमकी भरा भाई-बहन का यह प्यार अविस्मरणीय होता है।
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रक्षाबंधन के पवित्र पर्व की बात करें तो, भाई-बहन का यह स्नेह-संबंध कल्याण-मित्र के रूप में परिवर्तित हो जाना चाहिए। इससे भाई-बहन का प्रेम भवोभव के लिए अमर हो जायेगा।
तो आइये ! इस संदर्भ में इतिहास के कुछ पृष्ठों को पलटते हैं।
युगादिदेव दादा आदिनाथ के समय की बात है। राजा ऋषभ ने सभी राजसी भोगों का परित्याग कर संयम अंगीकार कर लिया। उनके दोनों पुत्र भरत एवं बाहुबली अपने-अपने राज्य में राजसुख का भोग करने लगे। कालान्तर में चक्रवर्ती पद की प्राप्ति के लिए भरत के विजय अभियान से बाहुबली के साथ युद्ध करने का प्रसंग उपस्थित हुआ। इस घटना से बोध प्राप्त कर बाहुबली को सभी सांसारिक सुख-भोग अकिंचन लगने लगे। सच्चे सुख की तलाश में वे साधना करने लगे।
भगवान आदिनाथ ने साध्वी ब्राह्मी और सुन्दरी को आदेश दिया कि वे जाकर अपने भाईमुनि बाहु-बली को प्रतिबोध दें।
ब्राह्मी और सुन्दरी बाहुबली के पास गयीं और कहा कि, ‘मेरे भाई! हाथी से नीचे उतरो। हाथी पर बैठे रहने पर केवलज्ञान नहीं होता।’ ( वीरा मोरा गज थकी उतरो, गज चडे केवल न होय )
बाहुबली उस समय साधना में लीन थे। उन्हें आश्चर्य हुआ। वे विचार करने लगे कि, ‘मैं तो साधना में लीन हूं। फिर मैं कौन से हाथी पर सवार हूं? परंतु बहनों द्वारा कहे गये स्नेहपूर्ण शब्द मेरे कल्याण के लिए हैं।’
बाहुबली तुरंत समझ गये कि ‘मैं तो मान रूपी हाथी पर सवार हूं।’
बाहुबली मान रूपी हाथी से नीचे उतरे। और जैसे ही उन्होंने प्रभु की ओर जाने के लिए कदम बढ़ाये, उन्हें भी केवलज्ञान हो गया।
इस प्रकार भाई बाहुबली को केवलज्ञान प्राप्त करवाने में उनकी बहनों, ब्राह्मी और सुन्दरी का नाम निमित्त तो बना ही, यह प्रसंग इतिहास का भी अमिट आलेख बन गया।
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अब हम बात कर रहे हैं जिनशासन की स्थापना करने वाले प्रभु श्री महावीर स्वामी के समय की। ‘सवि जीव करूं शासनरसी’ की भावना से जगत के सभी जीवों का कल्याण चाहने व करने वाले प्रभु महावीर ने दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुए। जगत के सभी जीवों के तारणहार के निर्वाण से सभी लोगों की आंख में आंसू थे। प्रभु वीर की प्रत्येक इच्छा को अहोभाव से शिरोधार्य करने वाले श्री गौतम स्वामी कल्पांत रूदन करने लगे। प्रभु महावीर के बड़े भाई नन्दि-वर्धन शोक से विह्वल थे। उनके जीवन में घोर अंधकार व्याप्त हो गया था।
इसी समय राजा नंदिवर्धन की पीड़ा का भी कोई पार नहीं था। भाई नन्दिवर्धन को बहन सुदर्शना ने संभाला। उन्हें समझाया और मानसिक आघात से बाहर निकाल कर समाधि प्राप्त करने में सहयोग दिया। धन्य है ऐसी बहन सुदर्शना। भाई-बहन के इस प्रेम की स्मृति को दीपावली के दूसरे दिन ‘भाई-दूज’ के रूप में मनाया जाता है। भाई अपनी बहन को भेंट देता है।
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अब हम बात करते हैं जिनशासन की यश-कीर्ति में चार चांद लगाने वाले भाई-बहन की। इन भाई-बहन के जीवन में पिता की छत्रछाया का अभाव था। भाई ने बहन की पूरी जिम्मेदारी उठायी और उसे सुसंस्कार प्रदान करने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहता। उसने बहन को कभी भी पिता श्री की कमी का अहसास नहीं होने दिया।
यौवन अवस्था को प्राप्त होने पर भाई ने बहन का विवाह किया। विदायी के समय भेंट में बहुत सी धन-सम्पत्ति, हीरे, माणक, मोती, सोना-चांदी आदि प्रदान किया। बहन को दिखा कर उसने पूछा कि ‘बहन! कोई कमी तो नहीं रह गई ?’
परंतु बहन का चेहरा उदास था। भाई बोला- ‘कोई कमी है क्या? तेरे बराबर सोने की मोहरें भेंट कर सकता हूं। इन पांच सौ गाड़ियों को दोगुना कर सकता हूं।’
बहन ने उदास हो कर कहा- ‘भाई! यह सब भेंट तो आप ने संसार में मेरी आसक्ति बढ़ाने के लिए दिये हैं। मुझे तो ऐसी भेंट दीजिए, जो मुझे संसार से मुक्त कर दे।’
जब भाई की समझ में नहीं आया तो बहन ने उसे समझाते हुए कहा कि, ‘मुझे तो शत्रुंजय गिरिराज पर प्रभु का एक मंदिर चाहिए।’
बहन द्वारा इस मांग को सुनकर भाई प्रफुल्लित हुआ। उसने बहन के स्नेह को शिरोधार्य करते हुए वचन दिया कि मैं तेरी यह इच्छा अवश्य पूरी करूंगा।
इस बहन का नाम था ‘उजमसी’ और भाई का नाम था ‘प्रेमचंद’। धन्य है इस बहन की मांग, जिससे जिनशासन के शाश्वत तीर्थ गिरिराज पर नौ टूंकों में से एक ‘उजमफई की टूंक’ भेंट मिली। वंदन है ऐसे वीर भाई ‘प्रेमचन्द’ को।
यह रक्षाबंधन पर्व आप के लिए अविस्मरणीय बने, यही शुभकामना।
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