सफर : संसार से सिद्धशिला
- Muni Shri Tirthbodhi Vijayji Maharaj Saheb
- Jun 18, 2020
- 3 min read
Updated: Apr 12, 2024

दूसरा पड़ाव – सिद्ध
Hello Friends !
हम तो चले हैं फिलहाल उस यात्रा पर जहाँ मंजिल पर भगवान खुद खड़े हैं, और बड़ी बेसब्री से हमारा इंतजार कर रहे हैं, बाहें फैलाये हमें खुद की आगोश में समा लेने को आतुर है, प्रभु हमें भगवान बना देने के लिए उत्सुक है।
भगवान बनने के बीस कदम हैं। उसमें से आज हम दूसरे कदम को जानेंगे। दूसरा चरण है, सिद्ध पद की उपासना।
दुनिया में बहुत से स्कॉलर, क्वॉलिफाई लोग मिलेंगे कोई C.A की डिग्री वाला होगा, कोई MBA की डिग्री वाला होगा, कोई CFA करेगा। किन्तु क्या ऐसा मिलेगा जिसके पास दुनिया भर की देश-विदेश की सभी डिग्रीयाँ हो ?
सभी अलग अलग टेंडेंसी होती है, अलग-अलग स्किल्स होती है, चाह कर भी कोई हर एक क्षेत्र में महारत नहीं पा सकता, जो पाना चाहता हैं, वह सब कुछ नहीं पा सकता, जो बनना चाहता हैं वह नहीं बन सकता।
किसी महिला को रसोई बनाने की कला सिद्ध होती हैं, वह बातें करती रहती हैं और खाना पकाती रहती हैं पर उसके हाथ से उतना ही मसाला गिरता है, जितना गिरना चाहिए। उसका हाथ भी सभी डिब्बों में से निश्चित हल्दी या मिर्च के डिब्बे पर ही गिरता है, बगैर देखे, मानों कि उसके हाथो पर ही आँखें लग गई हो।
कोई कलाकार आँखे मूँद कर भी की-बोर्ड को बिलकुल सही ढंग से बजा सकता हैं, उसे संगीत की कला सिद्ध हो चुकी है।
कोई चित्रकार हाथ में ब्रश लेकर दो तीन कलर्स मे उसे डुबो के देखते ही देखते कैनवास पर रंगो का संसार भर देता हैं, क्योंकि उसे वह कला सिद्ध हो चुकी है।
ऐसे कोई न कोई कलासिद्ध – कर्मसिद्ध तो बहुत से मिलते है। किन्तु सभी विषय में जिन्होने सिद्धि पा ली हो, वे कहलाते हैं सच्चे सिद्ध। और उनका मुकाम इस संसार से परे है। दुनिया का सबसे ऊँचा स्थान उन सिद्ध भगवंतो के लिए मुकम्मल किया हुआ है। उसे मोक्ष स्थान -सिद्धशिला के नजदीक का स्थान कहते हैं।
इस सिद्धशिला पर जिनका निवास हैं, उनको सदाकाल के लिए हर एक प्रकार की ऋध्दि, लब्धि एवं संपत्ति प्राप्त है। वह हंमेशा आनंद में है, उन्हें सभी चीजों का संपूर्ण ज्ञान है, ऐसा कोई भी प्रश्न नहीं जिसका जवाब उनके पास नहीं हैं। सुख और दुःख के बीच वाली अवस्था पर वे सदाकाल स्थित है, जिसे आनंद की अवस्था कहते हैं। वो कुछ करते नही बस खुद की मौज में डूबे हुए अनंत काल तक रहते हैं, कुछ करने का आनंद नहीं, संपूर्ण होने का आनंद डर हंमेशा उनके अनुभव में बरकरार रहता है।
सिद्ध तो सिद्ध ही हैं, उनकी बात वो जाने, हमें तो भगवान बनना है, तो उनकी भक्ति करनी है, उनकी भक्ति के लिए ये गाना गाना है।
।। सिद्ध पद ।।
(तर्ज : एक प्यार का नगमा)
सिद्धि के धारक हो, अरिहंत पद दायक हो,
सिद्ध प्रभु ! में बिनती, मेरे लक्ष्य में बने रहना ।।
कर्मो का क्षय करके, उस मोक्ष को पाया है,
नहीं कोई यहाँ अपना, दुनिया को ये सिखाया है,
मेरे अंतर के मल का, वैसे ही दहन करना…. (1)
अविनाशी हो प्रभु ! तुम, और सब कुछ विनाशी है।
सत्ता, संपत्ति, स्वजन, ना कोई साथी है,
अविनाशी भक्ति का, मुझको भी वर देना …. (2)
अरिहंत की आज्ञा पर, जब आप रहे थे अचल,
तब पाया पद ये अचल, और बन गए अमर अमल,
मेरी चंचलता हर कर, मुझे सत्व अचल देना…..(3)
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