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साधक का अलंकार

Updated: Apr 7, 2024




Hello Friends,

आज बात की शुरूआत एक कहानी से करते हैं।

रास्ते से दो लड़के गुजर रहे थे। बारिश का मौसम था। बीच रास्ते बारिश गिरनी शुरू हुई, और थोड़ी ही देर में तो इतनी जोर से गिरने लगी, कि चलना मुश्किल हो गया।

दोनों ने रास्ते के किनारे पर स्थित एक छपरे का सहारा लिया। उस लोहे के छप्पर के नीचे जाकर वे खड़े हो गये। तेज बरसात थी इसलिए छपरे की बहुत तेज आवाज आ रही थी।

पहला युवक बोला, “ओह शिट! मैं तो तंग आ गया इसके शोर से, सुन-सुन कर मेरे तो कान फट गये। कितना आवाज कर रहा है यह छपरा?”

दूसरा मुस्कुराया और बोला, “दोस्त मेरे! बुरा मत सोच। उल्टा ऐसा सोच कि सिर पर यह छत है इसलिए बरसात से सुरक्षा मिल रही है। भले ही यह आवाज कर रहा है, पर हमारे ऊपर गिरने वाली मुसीबतों को खुद पर झेल रहा है, इस वजह से इतनी आवाज हो रही है। यह छपरा तो उपकारी है भैया!”

आज हम तीर्थंकर प्रभु बनने के 17वें सोपान पर खड़े हैं। इस पद का नाम है संयम पद

संयम, यानी एक ऐसी बोर्डर लाइन, एक ऐसी सीमा रेखा जिसे हमारे बुजुर्गों ने, हमारे पुरखों ने, हमारी संस्कृति ने, हमारे धर्म ने, हमारे धर्मगुरुओं ने, हमारे माँ-बाप ने, हमारे लिये खींच कर रखी है। यदि आदमी स्वयं ही समझदारी दिखाकर संयम में रहे, तो वह आपत्तियों के तूफान से अपने आप ही बच जाता है।

परन्तु यदि वह उस रेखा से बाहर निकलने की कोशिश करता है, तो फिर तूफानों की झपट में आ जाना स्वाभाविक है।

अतः ऐसे में, जब वह सुरक्षित सीमा रेखा, यानी संयम से पैर बाहर रखने हेतु तत्पर होता है, तब उससे सच्चा प्रेम करने वाले उसके सच्चे हितैषी, मित्र, माँ-बाप, धर्मगुरु, बड़े-बुजुर्ग सब मना करने लगते हैं, चिल्लाने लगते हैं, रोकते हैं, पुकार लगाते हैं। वे हमारे सिर पर रही छत के समान है, हमें तकलीफों से बचाना उनका फर्ज है।

उनकी पुकार से किसी के कान पक जाते हैं, तो किसी के कान धन्य बन जाते हैं। दूसरे किस्म के युवक जैसे लोग कहते है कि, “माँ, पिताजी, गुरुजी! मैं आपका आभारी हूँ, कि आपने मुझे उस ओर जाते हुए चिल्लाकर भी रोक लिया।”

पर पहले वाले युवक की भाँति कोई ऐसा भी होता है जो अपने सुरक्षाकवच को फाड़कर बाहर निकलने में बड़ी होशियारी समझता है, और चिल्लाने वाले बड़ों को ‘सिरदर्द’ समझता है।

पर फिर भी उसके बड़े और उसके गुरु तो जरूर चिल्लायेंगे, जरूर रुकेंगे… कुछ हद तक वे भी उसके पीछे-पीछे बाहर निकलेंगे, ताकि उसको अंदर ला सकें। एक छोर पर वे रुक जायेंगे, पर चिल्लाते रहेंगे। जब तक उनकी आवाज़ सुनने के दायरे में वह रहा, तब तक वे प्रयत्न करेंगे।

आखिर जब वह हाथ से निकल जाता है, तब भी वे उसकी राह देखेंगे, क्योंकि बाहर निकलने वाला कभी ना कभी तो थकता ही है, लौटता है, मुड़ता है। और तब वे उसे थामकर वापिस घर ले आयेंगे।

इसीलिए अपने संयम में रहो, संयम को कभी मत छोड़ो। संयम आपका बंधन नहीं, सुरक्षाकवच है। चलिए, इसका गुणगान करें।


॥ संयम पद ॥


(ये तो सच है कि…)

जीवन का ये शृंगार है, साधक का अलंकार है;

संयम तो मेरी आतमा के मंगल का आधार है…

जो परम शक्तिशाली थे परमात्मा, उन्होंने भी संयम का पालन किया;

नहीं निर्बलता किन्तु सामर्थ्य है, मौन रहना ही होती बड़ी साधना;

जिससे कर्मों की फौजें हटे; और परमपद की खुशियाँ मिले… 1

निर्बल के संयम की प्रशंसा नहीं, शक्तिशाली के संयम को लाखों नमन;

देव भी चूमते संयमी के चरण, जिनका है हमेशा विराग में मन;

परमात्मा बना दे संयम, यदि थोड़ा धरें धैर्य हम… 2

कोई भोगी यहाँ, कोई रोगी यहाँ, कोई भाई से या चिन्ता से हैरान है;

सभी संयम रखें, मन शांत बने, और काया के रोग भी ना रहते,

ये तो कुदरत का वरदान है, इससे मानव का कल्याण है… 3

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